भाजपा ने जिस तरह से अपनी सांप्रदायिक राजनीति के कारण पूरे देश को बांटने का काम किया है, उसका नुक्सान यह हुआ कि हर एक मुद्दे पर देश की राय को सच्चाई की जगह धर्म के आधार पर देखा जाने लगा है. देश में जब अफ़ज़ल गुरु के केस में न्याय की बात उठती है तो उसे मुस्लिम मज़हब से जोड़ कर हल्ला मचाया जाता है, क्योंकि अफ़ज़ल गुरु कश्मीर का रहने वाला और मुसलमान था इसलिए उसके पक्ष में संविधान के दायरे में रह कर बात करने वालों को भी देश द्रोही ठहरा दिया जाता है. लेकिन श्री राजीव गांधी जी के हत्यारों की सजा माफ़ होने की राजनीति पर अथवा भुल्लर के केस पर कोई चूँ-चरा नहीं करता.
इसी सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ अपनी सोच को ज़ाहिर करने के लिए इस रविवार (16 फ़रवरी) भारतीय राष्ट्रिय काँग्रेस की संस्था "A Billion Ideas" द्वारा आयोजित ब्लॉगर मीट में मैंने हिस्सा लिया. हालाँकि इस तरह का यह मेरा पहला मौका था, लेकिन वहाँ पर युवाओं, महिलाओं जैसे बहुत से मुद्दों के साथ देश के लिए ज़हर से भरी सांप्रदायिक राजनीति पर भी अच्छी बातचीत हुई. और मेरे नज़दीक नफरत की राजनीती देश के किसी भी और मुद्दे से कहीं बड़ा मुद्दा है. मेरा ख़याल यह है कि चुनाव आयोग को धर्म के नाम पर राजनीति या किसी ख़ास महज़ब की बात करने वाले राजनैतिक दलों पर बैन लगाना चाहिए.
नफरत की राजनीती करने वाले झूठ का सहारा लेकर लोगो का ध्यान इसके नतीजों से हटाकर नकली और प्रायोजित भ्रष्टाचार पर लगाना चाहते हैं, जबकि कोंग्रेस पार्टी हमेशा से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ पुरज़ोर आवाज़ उठाती रही है, कोंग्रेस ने कभी भी भ्रष्टाचार के आरोपो में घिरे अपने मंत्रियों तक को बचाने का काम नहीं किया और दूसरी तरफ भाजपा का बेनकाब चेहरा ऐसा है कि उनके नेता नरेंद्र मोदी एक तरफ तो भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषण झाड़ते हैं और दुसरी तरफ भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने के कारण मुख्यमंत्री पद तक छोड़ चुके श्री येदुरप्पा को भाजपा में वापिस बुलाकर उनके साथ मंच शेयर करते हैं. ऐसे नेताओं को पूरी तरह बेनकाब किया जाना ज़रूरी है.